सोमवार, 6 जून 2011
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
क्योकि किसान विज्ञापन नहीं देता
उत्तरप्रदेश •े गन्ना •िसानों •े प्रदर्शन •े बाद •ेन्द्र सर•ार क्या झु•ी छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य •े धान •िसानों ने भी गलत फहमी पाल ली •ि हम सर•ार •ो झु•ा लेगें। राजधानी दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तरप्रदेश,पंजाब हरियाणा या राजस्थान •े •िसानों •े •िसी भी आन्दोलन •ो मिडिया में इतना अधि• •वरेज मिलता हैं •ि वहा सर•ारों •ा झु•ना स्वाभावि• सा नजर आता हैं। दरअसल मिडिया •ी टीआरपी •ा फंडा छत्तीसगढ़ •े •िसानों •ी समझ से परे हैं। इसीलिए तो छत्तीसगढ़ जैसे नवगठित राज्य में •िसानों •े हालात बद से बदतर हैं। यहा •ा •िसान •र्ज में जन्मने और मरने •ी पीड़ा •ा आदी हैं। यहा पिछले दो महिनों से सर•ार •े वादाखिलाफी •े आरोप में •िसानों •े आन्दोलन तेज हुए हैं। यह महज संयोग ही हैं •ि जिस धमतरी जिले से •िसान आन्दोलन •ा आगाज हुआ वही बेमौसम बरसात से बरबाद धान •े ए• छोटी जोत •े •ाश्त•ार ने आत्महत्या •र राज्य •े प्रमुख विपक्षी दल •ांग्रेस •ो सर•ार •े खिलाफ ए• मुद्दा दे दिया। हाल ही में •िसानों •े महाबन्द •ो मिडिया में जब •िसानों •े आशानुरूप स्थान नही मिला तो उन्होने अपनी पीड़ा •ुछ इस तरह •ही •ि,,हमे सर•ार त• अपनी बात पंहुचाने •े लिए,प्रचार साधनों में दिखने या छपने •े लिए ए• तो आत्महत्या •रनी पड़ती हैं या फिर आगजनी •रनी पड़ती हैं,,जब पूछा •ि ऐसा क्यों, तो •िसानों •े समूह •ा सपाट सा जवाब था क्यो•ि हम मिडिया •ो विज्ञापन नही दे स•ते? जब हमारे ही भोजन •ा इन्तजाम नही तो मिडिया •ो •हा से दे? प्रतिप्रश्न •े रूप में •िसानों •ा समूह फिर उत्तेजित हो•र •हता है •ि चेंबर आफ •ामर्स या फिर •िसी राजनीत• दल •ा बंद या महाबंद होता तो सफल नही होने पर भी मिडिया उसे सफल •र देता। •िसानों •े यक्ष प्रश्नों •ा दौर यही समाप्त नही होता। •िसान पूछ रहा हंै •ि राज्य बने दस साल हो गये दोनो दलों •ी सर•ारे रही और हैं। राज्य •ी •ृषि नीति •ा मसौदा सर•ारी दड़बे से बाहर क्यो नही आ रहा हैं? उस मसौदे में ऐसा क्या है जिसे सार्वजनि• •रने में डर लग रहा हैं। धान •े •टोरे •े रूप में चर्चित इस राज्य में •ृषि नीति छोड़ •र सारी नीतियां हैं। उद्योग नीति,आवास नीति,शराब नीति,यहा त• •ी आदिवासी वोट बैं• साधने •े लिए बस्तर,सरगुजा वि•ास प्राधि•रण भी हैं ले•िन राज्य •े •िसान •े लिए •ोई नीति फिलहाल सर•ार •े पास नही हैं। उद्योग नीति से •िसान •ी जमीन तो जा रही हंै और जिस•ी जमीन नही जा रही हैं उस•ी खेती योज्य जमीन उद्योगो •ी चिमनी •ी राख से •ाली हो रही हैं.यानि देर सबेर उसे बेचना पड़ेगा। शराब नीति से क्या हो रहा हैं यह बताने •ी जरूरत नही हैं,अलबत्ता आवास नीति से •ांं•्रीट •े जंगल खड़े हो रहे हैं। खेती •ा •म होता र•बा,वर्षा •ी •मी से गिरता भूजल स्तर,उत्पादन और लागत •े बिगड़ते अनुपात,और सभी क्षेत्रों में •मरतोड़ महंगाई ने राज्य •े •िसानों •ी हालत खराब •र दी हैं। यही वजह है •ि राज्य में भी •िसानों •ी आत्महत्या •ा दौर शुरू हो गया हैं। जो विपक्षी दल •िसान •ी आत्महत्या पर राजनीति• रोटी से• रहा हैं उसनें पिछली पंचवर्षीय में विधानसभा या और •िसी फोरम पर सर•ार से यह क्यो नही पूछा •ि राज्य •ी •ृषि नीति •ा मसौदा •हा हैं? राज्य •े धमतरी जिले •े •िसान आशाराम पटेल •ी पीड़ा पर यदि गौर •रे तो आम •िसान •ी दशा सामने आ जाएगी। आठ ए•ड़ •े इस •ाश्त•ार •े पास बोर तो हैं ले•िन उसमें पानी नही हैं। सर•ार फ्री में बिजली दे भी दे तो उस•े •िस •ाम •ी। पिछले साल •े अ•ाल •े •ारण सोसायटी •ा •र्ज नही पटाया तो सर•ारी रि•ार्ड में डिफाल्टर हैं। इस साल •ी फसल •े लिए गांव •े साहू•ार से तीन रूपए सै•ड़े •ी दर से ब्याज पर पैसा लिया फसल बोई और पानी गायब,फलत: मवेशियों •ो फसल चरानी पड़ी। अब सं•ट यह •ि साहू•ार •ा मूलधन लौटाने त• खेत •ो गिरवी रखना हैं यानि जब त• साहू•ार •ा •र्ज न पटे उस पर साहू•ार खेती •रेगा। चूं•ि उस•े खेत में बोर,है पम्प है इसलिए वह गरीबी रेखा से उपर हैं तो फिर ए• व दो रूपए •िलों •ा चावल भी नही पाएगा। और रोजगार गारन्टी •ा •ाम भी नही। यानि त•नी•ी तौर पर न तो अब •िसान रहा और न ही मजदूर। और सामाजि• ताना बाना भीख मांगने •ी इजाजत नही देता। तो उसे •हा जाना चाहिए? क्या •रना चाहिए? राज्य •े स्वनामधन्य •िसान नेताओं •ी पृष्ठभूमि पर यदि नजर डाले तो •ोई साहू•ार, •ोई जमींदार और •ोई मालगुजार हैं। ऐसी स्थिति में छोटी जोत •ा •ाश्त•ार खेतिहर मजदूर •े अलावा क्या हो स•ता हैं? •ाम •े लिए पलायन •े सवाल पर सर•ारी नुमाईन्दो •ा जवाब होता हैं •ि यह तो परम्परागत पलायन हैं। जोगी •ार्य•ाल में राजनीति• तुष्टि•रण •े लिहाज से ए• •िसान आयोग •ा गठन •िया गया था ले•िन सर•ार बदली और आयोग गायब। अब यदि •िसान आत्महत्या •ा दौर शुरू होने •े बाद भी यदि फाईलों में बंद पड़ी •ृषि नीति •ो लागू नही •िया गया तो •िसानों •े लिए आने वाला समय •ठिन होगा। पानी •मी •ो देखते हुए •िसानों •ो पांच साल पहले •े फसल च•्र परिवर्तन •ी ओर ध्यान देना होगा। •म लागत और •ाम पानी में होने वाली फसल •ी ओर आना होगा ले•िन इस•े लिए भी मजबूत सर•ारी प्रयासों •ी जरूरत हैं। (लेख• •ो हाल ही में चन्दूलाल चन्द्रा•र पत्र•ारिता फेलोशीप प्राप्त हुई हैं)
बुधवार, 13 जनवरी 2010
राजनीति• शब्दावली से ,,जनता ,,गायब
राजनीति• शब्दावली से ,,जनता ,,गायब
दुर्ग 13 दिसंबर जनसत्ता। घात,प्रतिघात,खुलाघात,भीतरघात,गुटबाजी,•लह,अन्र्तर्•लह,निलंबन,निष्•ासन,अनुशासन ,इस•ा आदमी,उस•ा आदमी,निपटों,निपटाओं जैसी राजनीति• शब्दावली मे ,,जनता,, वाला शब्द गायब हैं। चुनाव •े दरम्यान राजनीति• वायुमंडल में इन शब्दों •ी गूंज इतनी अधि• है •ि आम आदमी हाशिए पर और मुख्यधारा में है राजनीति• पाखंड। प्रत्ये• राजनीति• दल •ो प्रतिद्वन्दी दल •ी बजाय अपने दल •े विघ्रसन्तोषी तत्वों से निपटने या उसे निपटाने में ज्यादा मशक्कत •रनी पड़ रही हैं। इस•े बावजूद लो•तंत्र •ी महिमा देखे •ी मतदाता वही •रता हैं जो उसे उचित लगता हैं। राजनीति• दलो •े दल दल से परे •म से •म दलों •ो यह आभास तो •राता हैं •ि हमारे बिना •िसी भी दल •ा अस्तित्व •हा? जैसे •ि वैशालीनगर उपचुनाव में मतदाताओं ने दलगत राजनीत से उपर उठ•र जातिवाद •ी राजनीति •ो ठेगा दिखाया । अवसरवादीवादियों •े लिए राष्टï्रीय राजनीति• दलों •ी प्रासंंिग•ता अब •ेवल चुनाव चिन्ह त• सीमित होती नजर आ रही हैं। ठी• चुनाव से पूर्व यह जुमले गढ़ लिए जाते है •ि इस बार,,फूल छाप •ांगे्रसी,,या ,,पंजा छाप भाजपाई ,,•ो निपटाना हैं। ,,हाथी,, •ो हसिंए हथौडे से •ाटना या पीटना है या फिर,,लालटेन,,•ो,,साइ•िल,,पर टांगना हैं। राजनीति •ी इस शब्दावली •े समक्ष भूख,भय,भ्रष्टïाचार, महंगाई,सडक़, पानी, बिजली, सफाई जैसे बुनियादी मुद्दे गायब हो रहे हैं। गरीबी हटाओ और आम आदमी •े लिए लगने वाले नारे राजनीति• भ्रष्टाचार •ी भेट चढ़ रहे हैं। नारो •ी गौण होती महत्ता •ा प्रमाण यह है •ि झंडे,पोस्टर,बैनर टांगने और दरी उठाने वाले दलीय •ी विचाराधारा से ज्यादा अपने राजनीति• आं•ा •े प्रति वफादार दिखने लगे हैं। राजनीति में अपराधी•रण या धर्म और राजनीति जैसे मसले इस शब्दावली •े समक्ष गौण होते दिख रहे हैं। •मोबेश प्रत्ये• राजनीति• दल •े ए• धड़े में अतिशय महत्वा•ांक्षाए हिलोरे मारती हैं नतीजतन अपनी ता•त •े बूते यह धड़ा समानान्तर संगठन खड़ा •र मूल दल •ो हाईजे• •रने •ी •ोशिश भी •रता हैं। गिनाने •ो तो सै•ड़ो उदाहरण हैं ले•िन •ुछ ऐसे हैं जिन्होने मुल दल •ो हाशिए पर ला खड़ा •िया हैं। अर्थशास्त्र •ा नियम भी तो यही •हता है •ि बहुतायत में उपलब्ध बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा •ो चलन से बाहर •र देती हैं। •ड़वा सच है •ि यह बीमारी उपर से नीचे •ी ओर आ रही हैं । विपरीत विचाराधारा वाले उपरी स्तर पर अवसरवादी राजनीति• गठबंधनो से अनजान जमीनी •ार्य•र्ता •भी •भार इतना भावु• हो जाता हैं •ि दलो •े खातिर पुश्तैनी संबधों •ो भी दांव पर लगा•र स्थानीय स्तर पर लड़ बैठता हैं। यह बीमारी •ेवल •ांग्रेस या अनुशासन •ा दंभ भरती भारतीय जनता पार्टी ,बसपा में ही नही बल्•ि नवोदित क्षेत्रीय दलों में भी देखी जा रही हैं। लो•सभा चुनाव •े समय अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच में भी फैैल गई हैं मंच •ा प्रत्ये• •ार्य•र्ता अपने आप •ो राष्ट्रीय दल •े वि•ल्प •े रूप में पेश •र रहा हैं। नगरीय नि•ाय चुनाव में भाजपा ने स्वाभिमान मंच •े घोषित पार्षद प्रत्याशियों •ो टि•िट दे•र यह तो साबित •र दिया •ि उन्हेे प्रत्याशी नही मिल रहे थे। बहरहाल नगरीय नि•ाय चुनाव •े टि•िट वितरण •े बाद उपजे असन्तोष •ो दबाने •े लिए प्रयासरत दोनो प्रमुख दलों •े पसीना आ रहा हैं।,, बोया पेड़ बबूला •ा तो आम •हा से पाओगे,,यहा •हावत शीर्ष पर पहुचे ुन नेताओं •े लिए है जो •ाय•र्ताओं •ो आपस में लड़ा•र तमाशाबीन बनते हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में दलों •ी पहचान गुटो •ी ता•त से हुआ •रती थी । भाजपा में पटवा, सारंग,जोशी •े गुटंों •ा महिमांमडन होता था। वही •ांग्रेस में विद्याचरण शुक्ल,श्यामा चरण शुक्ल अर्जुनसिंह और मोतीलाल वोरा •े गुटों •े समर्थ•ो •े लिए पार्टी से बड़े नेता हुआ •रते थे। छत्तीसगढ़ बनने •ा बाद अजीत जोगी और विद्याचरण शुक्ल •े राजनीति• अनुभवों ने इसे चरम त• पहुचा दिया जिस•ा परिणाम आज भी •ांग्रेस भुगत रही हैं और नि•ट भविष्य में भाजपा •ो इस•े लिए तैयार होने •ी जरूरत हैं। नि•ाय चुनाव में दोनो दलो में बगावत • सवाल पर बड़े नेता इस मामले में सफाई देते है •ि बड़े दलों मे यह ंआम बात हैं।
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दुर्ग 13 दिसंबर जनसत्ता। घात,प्रतिघात,खुलाघात,भीतरघात,गुटबाजी,•लह,अन्र्तर्•लह,निलंबन,निष्•ासन,अनुशासन ,इस•ा आदमी,उस•ा आदमी,निपटों,निपटाओं जैसी राजनीति• शब्दावली मे ,,जनता,, वाला शब्द गायब हैं। चुनाव •े दरम्यान राजनीति• वायुमंडल में इन शब्दों •ी गूंज इतनी अधि• है •ि आम आदमी हाशिए पर और मुख्यधारा में है राजनीति• पाखंड। प्रत्ये• राजनीति• दल •ो प्रतिद्वन्दी दल •ी बजाय अपने दल •े विघ्रसन्तोषी तत्वों से निपटने या उसे निपटाने में ज्यादा मशक्कत •रनी पड़ रही हैं। इस•े बावजूद लो•तंत्र •ी महिमा देखे •ी मतदाता वही •रता हैं जो उसे उचित लगता हैं। राजनीति• दलो •े दल दल से परे •म से •म दलों •ो यह आभास तो •राता हैं •ि हमारे बिना •िसी भी दल •ा अस्तित्व •हा? जैसे •ि वैशालीनगर उपचुनाव में मतदाताओं ने दलगत राजनीत से उपर उठ•र जातिवाद •ी राजनीति •ो ठेगा दिखाया । अवसरवादीवादियों •े लिए राष्टï्रीय राजनीति• दलों •ी प्रासंंिग•ता अब •ेवल चुनाव चिन्ह त• सीमित होती नजर आ रही हैं। ठी• चुनाव से पूर्व यह जुमले गढ़ लिए जाते है •ि इस बार,,फूल छाप •ांगे्रसी,,या ,,पंजा छाप भाजपाई ,,•ो निपटाना हैं। ,,हाथी,, •ो हसिंए हथौडे से •ाटना या पीटना है या फिर,,लालटेन,,•ो,,साइ•िल,,पर टांगना हैं। राजनीति •ी इस शब्दावली •े समक्ष भूख,भय,भ्रष्टïाचार, महंगाई,सडक़, पानी, बिजली, सफाई जैसे बुनियादी मुद्दे गायब हो रहे हैं। गरीबी हटाओ और आम आदमी •े लिए लगने वाले नारे राजनीति• भ्रष्टाचार •ी भेट चढ़ रहे हैं। नारो •ी गौण होती महत्ता •ा प्रमाण यह है •ि झंडे,पोस्टर,बैनर टांगने और दरी उठाने वाले दलीय •ी विचाराधारा से ज्यादा अपने राजनीति• आं•ा •े प्रति वफादार दिखने लगे हैं। राजनीति में अपराधी•रण या धर्म और राजनीति जैसे मसले इस शब्दावली •े समक्ष गौण होते दिख रहे हैं। •मोबेश प्रत्ये• राजनीति• दल •े ए• धड़े में अतिशय महत्वा•ांक्षाए हिलोरे मारती हैं नतीजतन अपनी ता•त •े बूते यह धड़ा समानान्तर संगठन खड़ा •र मूल दल •ो हाईजे• •रने •ी •ोशिश भी •रता हैं। गिनाने •ो तो सै•ड़ो उदाहरण हैं ले•िन •ुछ ऐसे हैं जिन्होने मुल दल •ो हाशिए पर ला खड़ा •िया हैं। अर्थशास्त्र •ा नियम भी तो यही •हता है •ि बहुतायत में उपलब्ध बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा •ो चलन से बाहर •र देती हैं। •ड़वा सच है •ि यह बीमारी उपर से नीचे •ी ओर आ रही हैं । विपरीत विचाराधारा वाले उपरी स्तर पर अवसरवादी राजनीति• गठबंधनो से अनजान जमीनी •ार्य•र्ता •भी •भार इतना भावु• हो जाता हैं •ि दलो •े खातिर पुश्तैनी संबधों •ो भी दांव पर लगा•र स्थानीय स्तर पर लड़ बैठता हैं। यह बीमारी •ेवल •ांग्रेस या अनुशासन •ा दंभ भरती भारतीय जनता पार्टी ,बसपा में ही नही बल्•ि नवोदित क्षेत्रीय दलों में भी देखी जा रही हैं। लो•सभा चुनाव •े समय अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच में भी फैैल गई हैं मंच •ा प्रत्ये• •ार्य•र्ता अपने आप •ो राष्ट्रीय दल •े वि•ल्प •े रूप में पेश •र रहा हैं। नगरीय नि•ाय चुनाव में भाजपा ने स्वाभिमान मंच •े घोषित पार्षद प्रत्याशियों •ो टि•िट दे•र यह तो साबित •र दिया •ि उन्हेे प्रत्याशी नही मिल रहे थे। बहरहाल नगरीय नि•ाय चुनाव •े टि•िट वितरण •े बाद उपजे असन्तोष •ो दबाने •े लिए प्रयासरत दोनो प्रमुख दलों •े पसीना आ रहा हैं।,, बोया पेड़ बबूला •ा तो आम •हा से पाओगे,,यहा •हावत शीर्ष पर पहुचे ुन नेताओं •े लिए है जो •ाय•र्ताओं •ो आपस में लड़ा•र तमाशाबीन बनते हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में दलों •ी पहचान गुटो •ी ता•त से हुआ •रती थी । भाजपा में पटवा, सारंग,जोशी •े गुटंों •ा महिमांमडन होता था। वही •ांग्रेस में विद्याचरण शुक्ल,श्यामा चरण शुक्ल अर्जुनसिंह और मोतीलाल वोरा •े गुटों •े समर्थ•ो •े लिए पार्टी से बड़े नेता हुआ •रते थे। छत्तीसगढ़ बनने •ा बाद अजीत जोगी और विद्याचरण शुक्ल •े राजनीति• अनुभवों ने इसे चरम त• पहुचा दिया जिस•ा परिणाम आज भी •ांग्रेस भुगत रही हैं और नि•ट भविष्य में भाजपा •ो इस•े लिए तैयार होने •ी जरूरत हैं। नि•ाय चुनाव में दोनो दलो में बगावत • सवाल पर बड़े नेता इस मामले में सफाई देते है •ि बड़े दलों मे यह ंआम बात हैं।
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अमीर धरती • गरीब लोग
,,अमीर धरती •े गरीब लोग,,
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यशवंत धोटे
नौ•रशाह से राजनीतिज्ञ बने ए नेता ने नवगठित राज्य छत्तीसगढ़ •े लिए 9 साल पहले यह जुमला दिया था •ि,,अमीर धरती •े गरीब लोग,,अब गरीब नही रहेंगे। राज्य में प्रचुर प्रा•ृति• संसाधनों,मसलन हीरा,•ोयला,लौह अयस्•,चूना पत्थर और पर्याप्त जल, जंगल, जमीन •ी उपलब्धता पर गर्व •रते हर राज्यवासी •ो इस जुमले •ी तह में जाने •ी जरूरत हैं। सतही तौर पर इस जुमले •ी प्रासंगि•ता पर सवाल उठाना बेमानी होगी। वर्तमान में राज्य में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन •रने वाले परिवारों •ी संख्या सर•ारी आ•ड़ों •े मुताबि• 35 लाख हंै जो राज्य •ी •ुल आबादी •ा 75 फीसदी हैं। अर्थात सवा दो •रोड़ •ी आबादी में लगभग देड़ •रोड़ लोग गरीब हैं। 34 फीसदी आदिवासी और 11 फीसदी अनुसूचित जाति •ी आबादी वाले इस राज्य में सर•ारी तौर पर घोषित गरीबों व अति गरीबों •ो राज्य सर•ार ए• व दो रूपये •िलों चावल •े अलावा बुनियादी सर•ारी सुविधाओं में जम•र रियायते दे रही हैं। इसी •ा आ•र्षण है •ि वर्ष 2005 में राज्य में •ेन्द्र प्रवर्तित गरीबी रेखा •ा आ•ड़ा मात्र 16 लाख था जो चार साल में यह 35 लाख पर पहुंचा हैं। नवंबर 2000 में राज्य बना तो मध्यप्रदेश से गरीबी रेखा •ा आ•ंड़ा छोड़ प्राय: वह सब •ुछ मिला जो ए• नये राज्य •ो मिलना चाहिए। गरीबी रेखा •े आ•ड़े नये राज्य •ी पूर्व व वर्तमान सर•ार •ी अपनी मिल्•ियत हैं। सामाजि•,आर्थि•,व राजनीति• विश्लेषण •े बाद इसे मिल्•ियत •हना इसलिए उचित होगा •ि इन आ•ड़ो से तीनो विधाओं •ी समृद्धि •ा सवाल जुड़ा हैं। प्रा•ृति• संसाधनों से भरपूर अविभाजित मध्यप्रदेश •े दक्षिण पूर्वी इस भाग •ो राज्य •ा दर्जा देने •ा उद्देश्य पिछड़े इला•ों •ा तेजी से वि•ास •राना था। इस इला•े •े तमाम नवोदित बुद्दिजीवियों •ा तर्• यही हुआ •रता था •ि छत्तीसगढ़ •े प्रा•ृति• संसाधनों •े दोहन से प्राप्त राजस्व से ही मध्यप्रदेश चलता हैं तो क्यो न ए• अलग राज्य बने और प्रत्ये• राज्यवासी समृद्ध हो। अविभाजित मध्यप्रदेश •ी 320 सदस्यीय विधानसभा में छत्तीसगढ़ •े •ांग्रेस विधाय•ों •ी सर्वाधि• संख्या उपरोक्त तर्•ो •ो प्रमाणित भी •रती रही •ि मध्यप्रदेश में •ांग्रेस •ी सर•ारे छत्तीसगढ़ •े बूते बनती हैं। इसलिये लम्बे समय त• •ेन्द्र में रही •ांग्रेस •ी सर•ारों ने नये राज्यों •े गठन •ो ज्यादा गंभीरता से नही लिया। ले•िन 1996, 1998 व 1999 •े आम चुनावों में राष्ट्रीय दलों •ो प्राप्त खंडित जनादेश नें छोटे राज्यों •ी परि•ल्पना •ो फिर पंख दिए और भाजपा •ी नेतृत्व वाली एनडीए •ी सर•ार ने तीन नये राज्यों •े गठन •ा फैसला •र लिया। यह बात अलग है •ि •ेन्द्र •े दबाव में मध्यप्रदेश •ी सर•ार •ो अशास•ीय सं•ल्प पारित •रना पड़ा। इसमें •ांंग्रेस •ो तात्•ालि• लाभ •े रूप में छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में तो सजी सजाई सर•ारें मिली और भाजपा •ो झारंखंड में मिली अस्थिर सर•ार। छत्तीसगढ़ में दूरगामी राजनीति• लाभ •े लिहाज से भाजपा ने स्थानीय स्तर पर गांव, गरीबी •ेन्द्रित योजनाओं •ो अस्तित्व में लाया। फलत: विपरित परिस्थितियों •े बावजूद पहली और दूसरी बार भी सत्ता मिली। दूसरी बार तो न •ेवल सत्ता मिली बल्•ि लो•सभा •ी 11 में 10 सीटे भाजपा •ो मिली। अब 9 साल पुराने इस अमीर राज्य •े गरीबी रेखा •े आ•ड़ों पर गौर •रे तो सचमुच लगता है •ि इस राज्य •ी अमीर धरती पर इतनी गरीबी •ैसे? पिछले •ार्य•ाल में ही •ांग्रेस ने आरोप लगाया था •ि •ेन्द्र सर•ार से धन पाने •े लिए सर•ार गरीबी रेखा •े आ•ड़े बढ़ चढ़ •र बता रही हैं। बहरहाल इस •ृत्रिम गरीबी •े आ•ड़ंो •ी बाजीगरी में उलझने •े बजाय राज्य •े आर्थि• ढांचे पर भी चिन्तन •ी जरूरत हैं। वर्ष 2000 में राज्य •ा बजट 5700 •रोड़ रूपये था जो 2009 में 24 हजार •रोड़ त• पहुंच गया हैं और बजट घाटा 14 हजार •रोड़ हो गया हैं। अर्थात चार गुणा बजट बढ़ा और लगभग 100 गुणा बजट घाटा बढ़ गया। ऐसा नही है •ि बजट या बजट घाटा बढऩे •े बाद भी राज्य •ा वि•ास नही हुआ हैं। अन्य दो नये राज्यों •ी अपेक्षा छत्तीसगढ़ में वि•ास •ी गति तेज हैं ले•िन इस•े बावजूद गरीबी रेखा •े आ•ड़े बढऩा हास्यास्पद हैं। इस•ा मूल •ारण 2005 से राज्य •े गरीबों •ो दिये जाने वाले सस्ते चावल पर सर•ार ने पहले साल से 8 सौ •रोड़ •ी सब्सीडी देना शुरू •िया अर्थात •ेन्द्र सर•ार से 6 रूपये 15 पैसे में मिलने वाला चावल तीन रूपए में गरीबों •ो दिया और बा•ि पैसा राज्य सर•ार ने •ेन्द्र सर•ार •ो दिया। यह सब्सीडी वर्तमान में 1400 •रोड़ त• पहुंच गई हैं। अर्थात इन चार वर्षो में चार हजार •रोड़ •ी सब्सीडी दी जा चु•ी हैं। योजना आयोग •े आ•ड़ों पर यदि भरोसा •रे तो राज्य •ी प्रतिव्यक्ति मासि• आय लगभग 16 हजार रूपए हैं इस•े बावजूद राज्य में 35 लाख गरीब परिवार हैं। राज्य में जिस तेजी से सडक़,शिक्षा,स्वास्थ,उद्योग और निर्माण •े क्षेत्र में वि•ास हुआ उस•ी दुगनी गति से गरीबी रेखा •ा आ•ड़ा बढ़ा। दरअसल वि•ास •े इन्ही आ•ड़ों •े चलते राज्य •ी प्रतिव्यक्ति मासि• आय 16 हजार रूपए निधारित तो हुई ले•िन गरीब ए• भी •म नही हुआ। सामाजि• मोर्चे पर यदि देखे तो राज्य •ा •ोई भी परिवार गरीबी रेखा से उपर ही नही आना चाहता। दो •रोड़ 10 लाख •ी आबादी यानि पचास लाख परिवार इसमें से 35 लाख गरीबी रेखा •े नीचे हैं तो स्वाभावि• तौर पर इनसे •िसी भी तरह •ा टेक्स नही लिया जा स•ता। लगभग 10 लाख •िसान परिवार ऐसे हैं जो टेक्स •े दायरे में नही आते। अब प्रश्न यह उठता हंै •ि क्या राज्य •े पांच लाख परिवार जो टेक्स देंगे उससे राज्य •ी दूसरी जरूरते पूरी हो पायेगी? गरीबी रेखा •े पीछे •ा दूसरा सच यह भी हैं •ि अधि•ांश सम्पन्न परिवारों ने गरीबी रेखा •े राशन •ार्ड बना•र चावल •ा व्यापार शुरू •र दिया हैं। यही वजह है •ि अमीर लगातार अमीर हो रहा है और गरीब लगातार गरीब होता चला जा रहा हैं। इस अमीरी और गरीबी •े बीच फंसा मध्यम सामान्य वर्ग •मरतोड़ महगांई •े इस दौर में दो जून •ी रोटी •े लिए जूझ रहा हैं।
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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
नौ सो चूहे खाकर बिल्ली हज को चली
नौ सो चूहे खाकर बिल्ली हज को चली
शराब ठेकेदारों की अनुसंशा पर बटे कांग्रेस के टिकिट
यशवंत धोटे
दुर्ग 8 जनवरी । दृश्य -एक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के गृहनगर दुर्ग के कांग्रेसियों का मन्दिररूपी कांग्रेस भवन। प्रसंग- नगरीय निकाय चुनाव मेंं टिकिट बाटने का उपक्रम। एक सज्जन अपने किसी समर्थक को टिकिट दिलाने कांग्रेस भवन उर्फ मन्दिर पहुंचे तो शहर जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष अरूण वोरा,पूर्व पार्षद प्रताप मध्यानी और अन्य दो तीन लोग बैठे थे। मध्यानी की कुर्सी के नीचे बिसलेरी की खाली बोतलों से भरी पोलीथीन का एक थैला पड़ा था। थैले पर नजर पड़ते ही टिकिट दिलाने पहुचे सज्जन ने जिज्ञासावस पूछ लिया कि कही ये खाली बोतले शराब की तो नही?े बस इतना कहना था कि मध्यानी ने मानों सिर पर आसमान उठा लिया हो। नही कांग्रेस भवन में ऐसा नही हो सकता। हालांकि अरूण वोरा ने भी कांग्रेस और शराब की प्रति संवेदनशीलता का परिचय देते हुए कहा कि यह कांग्रेस भवन हम कांंंंग्रेस वालों के लिए मन्दिर के समान हैं। अरूण ने तो यहा तक कह दिया कि गणीमत है कि हमारे नेता प्रदीप चौबे यहा नही है नही तो शराब का नाम सुनकर कांग्रेस भवन से उठकर चले जाते । दृश्य-2 जिस कांंग्रेस भवन में गांधी के नाम के सौदागरों द्वारा शराब शब्द को लेकर इतनी संवेदनशीलता बरती जा रही थी उसका दूसरा पक्ष देखना भी जरूरी हैं। कथित मन्दिर रूपी कांग्रेस भवन में बैठे इन लोगो ने कम से कम सात ऐसे पार्षद प्रत्याशी चुने जिनका काम श्रम बाहुल्य इलाकों में पाउच में शराब बेचने का हैं हालाकि इसमें से 6 चुनाव हार गये हैं। लंगूर सोनी नामक कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ता जिनका काम शराब के बड़े ठेकेदारों से पेटी कान्टेक्ट लेकर निचले इलाके में शराब सप्लाई करने का हैं.। उनकी पत्नी दूसरी बार भारी मत से पार्षद चुनी गई हैं। जिन लोगो ने इन सात पार्षद प्रत्याशियों की अनुसंशा की थी उनका काम भी शराब और शराब से जुड़े कुटीर उद्योंगों का हैं। मसलन चमकाना,धमकाना,उठवाना,पिटवाना, जेल भिजवाना, छुड़वाना समझौता करवाना और उसमें भी दलाली खाना। दरअसल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के बड़े नेता राज्य सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने गांव गांव में शराब दुकाने खुलवाकर राज्य की ग्रामीण संस्कृति को चोट पहुचाई हैं। गंाधी दर्शन के पुरोधाओं को शायद नही मालूम कि सरकार की इस योजना का लाभ उनके लोग कितना उठा रहे हैं। यानि कांग्रेस उस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि ,, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली,, ।
शराब ठेकेदारों की अनुसंशा पर बटे कांग्रेस के टिकिट
यशवंत धोटे
दुर्ग 8 जनवरी । दृश्य -एक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के गृहनगर दुर्ग के कांग्रेसियों का मन्दिररूपी कांग्रेस भवन। प्रसंग- नगरीय निकाय चुनाव मेंं टिकिट बाटने का उपक्रम। एक सज्जन अपने किसी समर्थक को टिकिट दिलाने कांग्रेस भवन उर्फ मन्दिर पहुंचे तो शहर जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष अरूण वोरा,पूर्व पार्षद प्रताप मध्यानी और अन्य दो तीन लोग बैठे थे। मध्यानी की कुर्सी के नीचे बिसलेरी की खाली बोतलों से भरी पोलीथीन का एक थैला पड़ा था। थैले पर नजर पड़ते ही टिकिट दिलाने पहुचे सज्जन ने जिज्ञासावस पूछ लिया कि कही ये खाली बोतले शराब की तो नही?े बस इतना कहना था कि मध्यानी ने मानों सिर पर आसमान उठा लिया हो। नही कांग्रेस भवन में ऐसा नही हो सकता। हालांकि अरूण वोरा ने भी कांग्रेस और शराब की प्रति संवेदनशीलता का परिचय देते हुए कहा कि यह कांग्रेस भवन हम कांंंंग्रेस वालों के लिए मन्दिर के समान हैं। अरूण ने तो यहा तक कह दिया कि गणीमत है कि हमारे नेता प्रदीप चौबे यहा नही है नही तो शराब का नाम सुनकर कांग्रेस भवन से उठकर चले जाते । दृश्य-2 जिस कांंग्रेस भवन में गांधी के नाम के सौदागरों द्वारा शराब शब्द को लेकर इतनी संवेदनशीलता बरती जा रही थी उसका दूसरा पक्ष देखना भी जरूरी हैं। कथित मन्दिर रूपी कांग्रेस भवन में बैठे इन लोगो ने कम से कम सात ऐसे पार्षद प्रत्याशी चुने जिनका काम श्रम बाहुल्य इलाकों में पाउच में शराब बेचने का हैं हालाकि इसमें से 6 चुनाव हार गये हैं। लंगूर सोनी नामक कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ता जिनका काम शराब के बड़े ठेकेदारों से पेटी कान्टेक्ट लेकर निचले इलाके में शराब सप्लाई करने का हैं.। उनकी पत्नी दूसरी बार भारी मत से पार्षद चुनी गई हैं। जिन लोगो ने इन सात पार्षद प्रत्याशियों की अनुसंशा की थी उनका काम भी शराब और शराब से जुड़े कुटीर उद्योंगों का हैं। मसलन चमकाना,धमकाना,उठवाना,पिटवाना, जेल भिजवाना, छुड़वाना समझौता करवाना और उसमें भी दलाली खाना। दरअसल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के बड़े नेता राज्य सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने गांव गांव में शराब दुकाने खुलवाकर राज्य की ग्रामीण संस्कृति को चोट पहुचाई हैं। गंाधी दर्शन के पुरोधाओं को शायद नही मालूम कि सरकार की इस योजना का लाभ उनके लोग कितना उठा रहे हैं। यानि कांग्रेस उस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि ,, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली,, ।
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