बुधवार, 13 जनवरी 2010

राजनीति• शब्दावली से ,,जनता ,,गायब

राजनीति• शब्दावली से ,,जनता ,,गायब
दुर्ग 13 दिसंबर जनसत्ता। घात,प्रतिघात,खुलाघात,भीतरघात,गुटबाजी,•लह,अन्र्तर्•लह,निलंबन,निष्•ासन,अनुशासन ,इस•ा आदमी,उस•ा आदमी,निपटों,निपटाओं जैसी राजनीति• शब्दावली मे ,,जनता,, वाला शब्द गायब हैं। चुनाव •े दरम्यान राजनीति• वायुमंडल में इन शब्दों •ी गूंज इतनी अधि• है •ि आम आदमी हाशिए पर और मुख्यधारा में है राजनीति• पाखंड। प्रत्ये• राजनीति• दल •ो प्रतिद्वन्दी दल •ी बजाय अपने दल •े विघ्रसन्तोषी तत्वों से निपटने या उसे निपटाने में ज्यादा मशक्कत •रनी पड़ रही हैं। इस•े बावजूद लो•तंत्र •ी महिमा देखे •ी मतदाता वही •रता हैं जो उसे उचित लगता हैं। राजनीति• दलो •े दल दल से परे •म से •म दलों •ो यह आभास तो •राता हैं •ि हमारे बिना •िसी भी दल •ा अस्तित्व •हा? जैसे •ि वैशालीनगर उपचुनाव में मतदाताओं ने दलगत राजनीत से उपर उठ•र जातिवाद •ी राजनीति •ो ठेगा दिखाया । अवसरवादीवादियों •े लिए राष्टï्रीय राजनीति• दलों •ी प्रासंंिग•ता अब •ेवल चुनाव चिन्ह त• सीमित होती नजर आ रही हैं। ठी• चुनाव से पूर्व यह जुमले गढ़ लिए जाते है •ि इस बार,,फूल छाप •ांगे्रसी,,या ,,पंजा छाप भाजपाई ,,•ो निपटाना हैं। ,,हाथी,, •ो हसिंए हथौडे से •ाटना या पीटना है या फिर,,लालटेन,,•ो,,साइ•िल,,पर टांगना हैं। राजनीति •ी इस शब्दावली •े समक्ष भूख,भय,भ्रष्टïाचार, महंगाई,सडक़, पानी, बिजली, सफाई जैसे बुनियादी मुद्दे गायब हो रहे हैं। गरीबी हटाओ और आम आदमी •े लिए लगने वाले नारे राजनीति• भ्रष्टाचार •ी भेट चढ़ रहे हैं। नारो •ी गौण होती महत्ता •ा प्रमाण यह है •ि झंडे,पोस्टर,बैनर टांगने और दरी उठाने वाले दलीय •ी विचाराधारा से ज्यादा अपने राजनीति• आं•ा •े प्रति वफादार दिखने लगे हैं। राजनीति में अपराधी•रण या धर्म और राजनीति जैसे मसले इस शब्दावली •े समक्ष गौण होते दिख रहे हैं। •मोबेश प्रत्ये• राजनीति• दल •े ए• धड़े में अतिशय महत्वा•ांक्षाए हिलोरे मारती हैं नतीजतन अपनी ता•त •े बूते यह धड़ा समानान्तर संगठन खड़ा •र मूल दल •ो हाईजे• •रने •ी •ोशिश भी •रता हैं। गिनाने •ो तो सै•ड़ो उदाहरण हैं ले•िन •ुछ ऐसे हैं जिन्होने मुल दल •ो हाशिए पर ला खड़ा •िया हैं। अर्थशास्त्र •ा नियम भी तो यही •हता है •ि बहुतायत में उपलब्ध बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा •ो चलन से बाहर •र देती हैं। •ड़वा सच है •ि यह बीमारी उपर से नीचे •ी ओर आ रही हैं । विपरीत विचाराधारा वाले उपरी स्तर पर अवसरवादी राजनीति• गठबंधनो से अनजान जमीनी •ार्य•र्ता •भी •भार इतना भावु• हो जाता हैं •ि दलो •े खातिर पुश्तैनी संबधों •ो भी दांव पर लगा•र स्थानीय स्तर पर लड़ बैठता हैं। यह बीमारी •ेवल •ांग्रेस या अनुशासन •ा दंभ भरती भारतीय जनता पार्टी ,बसपा में ही नही बल्•ि नवोदित क्षेत्रीय दलों में भी देखी जा रही हैं। लो•सभा चुनाव •े समय अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच में भी फैैल गई हैं मंच •ा प्रत्ये• •ार्य•र्ता अपने आप •ो राष्ट्रीय दल •े वि•ल्प •े रूप में पेश •र रहा हैं। नगरीय नि•ाय चुनाव में भाजपा ने स्वाभिमान मंच •े घोषित पार्षद प्रत्याशियों •ो टि•िट दे•र यह तो साबित •र दिया •ि उन्हेे प्रत्याशी नही मिल रहे थे। बहरहाल नगरीय नि•ाय चुनाव •े टि•िट वितरण •े बाद उपजे असन्तोष •ो दबाने •े लिए प्रयासरत दोनो प्रमुख दलों •े पसीना आ रहा हैं।,, बोया पेड़ बबूला •ा तो आम •हा से पाओगे,,यहा •हावत शीर्ष पर पहुचे ुन नेताओं •े लिए है जो •ाय•र्ताओं •ो आपस में लड़ा•र तमाशाबीन बनते हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में दलों •ी पहचान गुटो •ी ता•त से हुआ •रती थी । भाजपा में पटवा, सारंग,जोशी •े गुटंों •ा महिमांमडन होता था। वही •ांग्रेस में विद्याचरण शुक्ल,श्यामा चरण शुक्ल अर्जुनसिंह और मोतीलाल वोरा •े गुटों •े समर्थ•ो •े लिए पार्टी से बड़े नेता हुआ •रते थे। छत्तीसगढ़ बनने •ा बाद अजीत जोगी और विद्याचरण शुक्ल •े राजनीति• अनुभवों ने इसे चरम त• पहुचा दिया जिस•ा परिणाम आज भी •ांग्रेस भुगत रही हैं और नि•ट भविष्य में भाजपा •ो इस•े लिए तैयार होने •ी जरूरत हैं। नि•ाय चुनाव में दोनो दलो में बगावत • सवाल पर बड़े नेता इस मामले में सफाई देते है •ि बड़े दलों मे यह ंआम बात हैं।
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